श्री हेमकुंड साहिब या गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब जी सिखों का एक धार्मिक स्थल है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। हेमकुंड एक बर्फ की झील है जो सात विशाल पर्वतों से घिरी हुई है जिन्हें हेमकुंड पर्वत भी कहते हैं। हेमकुंड साहिब की यात्रा हिन्दू की पवित्र अमरनाथ यात्रा से भी जोड़ कर देखी जाती है।
सिख धर्म की आस्था का प्रतीक हेमकुण्ड साहीब का पावन गुरूद्वारा समुद्र तल से 4329 मी. की ऊँचाई पर एक झील के किनारे स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पहले एक मंदिर था जिसका निर्माण भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने करवाया था। सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह ने यहां पूजा अर्चना तथा तपस्या की थी। बाद में इसे गुरूद्वारा घोषित कर दिया गया। इस दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है। एक छोटी जलधारा इस झील से निकलती है जिसे हिमगंगा कहते हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण साल में लगभग 7 महीने यंहा झील बर्फ में जम जाती है। फूलों की धाटी यहां का नजदीकी पर्यटन स्थल है।
श्री हेमकुंड साहिब का इतिहास
श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा सिख गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित है और इसका उल्लेख दसम ग्रंथ में भी है जो कि स्वयं गुरु जी द्वारा लिखी गई है। दसम ग्रंथ में गुरु ने अपने जन्म के बारे में घटना बताई है कि हेमुकंड की नदी के पास ही जब उन्होंने अपने ध्यान और तपस्या द्वारा भगवान का स्मरण कर लिया था तो भगवान ने उन्हें धरती पर जन्म लेने को कहा ताकि वह लोगों तक आस्था और धर्म का सही मतलब पहुंचा सकें और लोगों को बुराइयों से बचने का रास्ता बता सकें।
हेमकुंड की खोज सिखों द्वारा की गई थी जब वह अपने गुरु के तप स्थान को ढूंढ़ने की चाह से निकले थे। आज हेमकुंड में जो गुरुद्वारा स्थित है उसकी स्थापना सन् 1960 के आस-पास की गई थी। पत्थर और चिनाई के भव्य तारे के आकार की यह संरचना हेमकुंड झील के किनारे पर है। यहां ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर स्थित गोबिन्दघाट द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहां पास में भगवान लक्ष्मण को भी एक मंदिर समर्पित है।
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