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अल्मोड़ा का इतिहास

अल्मोड़ा का इतिहास  महाभारत के प्राचीन काल में वापस आ सकता है। सातवीं शताब्दी में एक चीनी तीर्थयात्री ने शहर के पहले ऐतिहासिक विवरण प्रदान किया था कत्युरी राजवंश  क्षेत्र ने पहले राज्य की स्थापना की । उनके वंशज,  राजा बैचाल्देव ने , भूमि का एक प्रमुख हिस्सा   श्री चंद तिवारी ,  एक गुजराती ब्राह्मण  को दान किया। सोलहवीं शताब्दी  के मध्य में , चंद वंश इस क्षेत्र पर शासन कर रहा था। उन्होंने अपनी  राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा  तक स्थानांतरित कर दी और इसे  ‘आलम नगर’ या  ‘राजपुर’  नाम दिया |  अली मुहम्मद खान रोहिल्ला  द्वारा छापे के दौरान  1744 में , अल्मोड़ा को चंद वंश से कब्जा कर लिया गया था । हालांकि, पहाड़ियों में रहने की कठिनाइयों को सहन करने में असमर्थ, अली मोहम्मद खान रोहिल्ला ने रोहिल्ला प्रमुखों को , तीन लाख रुपयों की भारी रिश्वत के लिए अल्मोड़ा लौटा दिया। अली मोहम्मद, उनके कमांडरों के आचरण से असंतुष्ट थे , उन्होंने फिर से  1745  में अल्मोड़ा पर हमला किया । हालांकि, इस बार रोहिल्ल...
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नन्दा देवी मेला, अलमोड़ा

भाद्र मास की पंचमी से नंदा देवी का मेला आरंभ होता है। षष्ठी के दिन कदली वृक्षों को पूजन के लिये मंदिर ले जाते हैं। सप्तमी की सुबह इन कदली वृक्षों को नंदा देवी मंदिर ले जाया जाता है। मंदिर में भक्त और स्थानीय कलाकार इन कदली वृक्षों से मां नंदा एवं सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं। इसके बाद इनमें प्राण प्रतिष्ठा कर विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। प्रतिमाओं को बनाने के लिये कदली वृक्षों को इस बार कौसानी के पास स्थित छानी और ल्वेशाल गांव से नंदा देवी मंदिर परिसर लाया जाएगा। मेले की जगरिए और बैरियों की गायकी भी काफी मशहूर है। ये मेला चंद्र वंश के शासन काल से अल्मोड़ा में मनाया जाता रहा है। इसकी शुरुआत राजा बाज बहादुर चंद्र (सन् 1638-78) के शासन काल से हुई थी। आदिशक्ति नंदादेवी का पवित्र धाम उत्तराखंड को ही माना जाता है। चमोली के घाट ब्लॉक में स्थित कुरड़ गांव को उनका मायका और थराली बलॉक में स्थित देवराडा को उनकी ससुराल.जिस तरह आम पहाड़ी बेटियां हर वर्ष ससुराल जाती हैं, माना जाता है कि उसी संस्कृति का प्रतीक नंदादेवी भी 6 महीने ससुराल औऱ 6 महीने मायके में रहती हैं। उत...

कुमाँऊ

 कुमाँऊ शब्द की उत्पत्ति कुर्मांचल से हुई है जिसका मतलब है कुर्मावतार (भगवान विष्णु का कछुआ रूपी अवतार) की धरती। कुमाँऊ मध्य हिमालय में स्थित है, इसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में काली नदी, पश्चिम में गढ‌वाल और दक्षिण में मैदानी भाग। इस क्षेत्र में मुख्यतया ‘कत्यूरी’ और ‘चंद’ राजवंश के वंशजों द्धारा राज्य किया गया। उन्होंने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का भी निर्माण किया जो आजकल सैलानियों (टूरिस्ट) के आकर्षण का केन्द्र भी हैं।   कुमाँऊ का पूर्व मध्ययुगीन इतिहास ‘कत्यूरी’ राजवंश का इतिहास ही है, जिन्होंने 7 वीं से 11 वीं शताब्दी तक राज्य किया। इनका राज्य कुमाँऊ, गढ‌वाल और पश्चिम नेपाल तक फैला हुआ था। अल्मोड‌ा शहर के नजदीक स्थित खुबसूरत जगह बैजनाथ इनकी राजधानी और कला का मुख्य केन्द्र था। इनके द्धारा भारी पत्थरों से निर्माण करवाये गये मंदिर वास्तुशिल्पीय कारीगरी की बेजोड‌ मिसाल थे। इन मंदिरों में से प्रमुख है ‘कटारमल का सूर्य मंदिर’ (अल्मोडा शहर के ठीक सामने, पूर्व के ओर की पहाड‌ी पर स्थित)। 900 साल पूराना ये मंदिर अस्त होते ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के वक्त बनवाया गया था। कुम...

गंगोत्री

गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है। पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद...

गर्जिया देवी मन्दिर

गर्जिया देवी मन्दिर या 'गिरिजा देवी मन्दिर' उत्तराखण्ड के सुंदरखाल गाँव में स्थित है, जो माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर श्रद्धा एवं विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। उत्तराखण्ड का यह प्रसिद्ध मंदिर रामनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर छोटी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है, जहाँ का खूबसूरत वातावरण शांति एवं रमणीयता का एहसास दिलाता है। देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में गिरिजा देवी (गर्जिया देवी) का स्थान अद्वितीय है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही इन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। मान्यता है कि जिन मन्दिरों में देवी वैष्णवी के रूप में स्थित होती हैं, उनकी पूजा पुष्प प्रसाद से की जाती है और जहाँ शिव शक्ति के रूप में होती हैं, वहाँ बलिदान का प्रावधान है। इतिहास पुरातत्ववेत्ताओं का कथन है कि कूर्मांचल की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली के पास थी, जहाँ पर वर्तमान रामनगर बसा हुआ है। कोसी नदी के किनारे बसी इसी नगरी का नाम तब 'वैराट पत्तन' या 'वैराट नगर' था। कत्यूरी राजाओं के आने के पूर्व यहाँ पहले कुरु राजवंश के राजा राज्य करते थे, ज...

गोलू देवता

गोलू देवता के प्रति उत्तराखण्ड वासियों की विशेष श्रद्धा है, ये घर-घर में पूजे जाने वाले देवता हैं। उत्तराखण्ड के कुमायूं मण्डल में इनके तीन मुख्य मंदिर चम्पावत, चितई और घोड़ाखाल में हैं तथा पौड़ी गढवाल में भी इनका एक मंदिर कंडोलिया देवता के नाम से है। कुमायूं मण्डल में हर गांव में तथा ऐसे ही घर के अन्दर भी गोलू देवता का मंदिर आवश्यक रुप से होता है। इतिहास में अंकित है कि गोलू देवता उत्तराखण्ड के न्यायप्रिय राजा रहे हैं, इनके दरबार में लोग न्याय की आशा में आते और उचित न्याय पाकर गोलू राजा की जय-जयकार करते वापस जाते थे। इनकी न्यायप्रियता ने इन्हें लोगों के दिलों में अंकित कर दिया और लोग इनकी पूजा करने लगे, परिणाम स्वरुप आज गोलू देवता घर-घर में सम्मान के साथ पूजे जाते हैं। गोलू देवता की जागर भी लगाई जाती है, यहां पर श्री हरी विनोद पन्त जी द्वारा गोल्ज्यू की जीवन पर लिखित कथा को मैं आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ- श्री गोलू महाराज की संक्षिप्त कथा जनश्रुति पर आधारित) उत्तराखंड के लोकदेवता, यहाँ के जनमानस के इष्ट देव श्री ग्वेल ज्यू, बाला गोरिया, गौर भैरव या ग्वेल देवता की अपन...

श्री हेमकुंड साहिब

श्री हेमकुंड साहिब या गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब जी सिखों का एक धार्मिक स्थल है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। हेमकुंड एक बर्फ की झील है जो सात विशाल पर्वतों से घिरी हुई है जिन्हें हेमकुंड पर्वत भी कहते हैं। हेमकुंड साहिब की यात्रा हिन्दू की पवित्र अमरनाथ यात्रा से भी जोड़ कर देखी जाती है। सिख धर्म की आस्था का प्रतीक हेमकुण्ड साहीब का पावन गुरूद्वारा समुद्र तल से 4329 मी. की ऊँचाई पर एक झील के किनारे स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पहले एक मंदिर था जिसका निर्माण भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने करवाया था। सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह ने यहां पूजा अर्चना तथा तपस्या की थी। बाद में इसे गुरूद्वारा घोषित कर दिया गया। इस दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है। एक छोटी जलधारा इस झील से निकलती है जिसे हिमगंगा कहते हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण साल में लगभग 7 मही...